भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्योंकि आदमी हैं हम (5) / हरीश बी० शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:59, 9 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश बी० शर्मा |संग्रह=फिर मैं फिर से फिर कर आता /…)
वादा रहा
आपका संघर्ष व्यर्थ नहीं जाने दूंगा
मंदिर बनवाऊंगा
मूर्तियां लगवाऊंगा
मानवता के प्रति आपकी भूमिका के पेटे
एक वाल्मीकि
हाथों-हाथ अपॉइंट करवा दूंगा
वक्त-जरूरत
तुलसीदास जैसों की सेवाएं भी ली जाएंगी
आप आइये जरूर
खूब महिमा गाई जाएंगी।