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रहेगी कहां-री जिंदगी / हरीश बी० शर्मा

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पता
नहीं पूछता मैं किसी का भी
डरता हूं
उस स्वाभाविक सवाल से
जब पूछ लिया जाएगा
ठिकाना मेरा
सच-सच बता पाऊंगा
बुला पाऊंगा
मेरे ठिकाने
कितना आसां होता है
कह देना
‘मेरे घर आना जिंदगी’
रहेगी कहां-री जिंदगी
जब आएगी
जीने के लिए मेरे घर ?