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हिन्दी! / कन्हैया लाल सेठिया
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हिन्दी म्हांरी भाण, नहीं कीं
हिन्दी सूं नाराजी ?
चूंघ्या जिण रा बोबा हिन्दी
बा ही जामण म्हांरी,
काळजियै री कोर सरीसी
हिन्दी म्हानै प्यारी,
हिन्दी खातर लगा सकां हां
म्हे सरवस री बाजी !
घणी करी हिन्दी री सेवा
जमनालाल सवाई,
भाईजी हनुमान चाकरी
इण री अटल बजाई,
मालपाणीजी, राममनोहर
खूब हाजरी साजी !
बणा देस री भासा दीनी
म्हे देकर कुरबानी,
म्हारो ही हो त्याग, बात आ
कोनी कीं स्यूं छानी !
इण री बढती देख घणो ही
जीव हुवै है राजी !