भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लोग मिलते गए काफ़िला बढ़ता गया / जयप्रकाश मानस

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:28, 11 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयप्रकाश मानस |संग्रह= }}<poem>अनदेखे ठिकाने के लिए …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अनदेखे ठिकाने के लिए
डेरा उसालकर जाने से पहले
समेटना है कुछ गुनगुनाते झूमते गाते
आदिवासी पेड़
पेड़ की समुद्री छाँव
छाँव में सुस्ताते
कुछ अपने जैसे ही लोग
लोगों की उजली आँखें
आँखों में गाढ़ी नींद
नींद में मीठे सपने
सपनों में, सफ़र में
जुड़ते हुए कुछ रोचक लोग