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क्या क़शिश हुस्ने-रोज़गार में है / शकील बदायूँनी

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</poem> क्या क़शिश1 हुस्ने-रोज़गार में2 है ग़म भी डूबा हुआ बहार में है

जब से खाए हैं उस नज़र के फ़रेब मेरा दिल मेरे इख़्तियार में है

दिल की धड़कन ये दे रही है सदा3 जा कोई तेरे इन्तिज़ार में है

हो परीशाँ हिजाबे-ग़म से4 न दिल कारवां पर्दा-ए-ग़ुबार में5 है

नाला-ए-नीम शब को6 को ग़ौर से सुन एक नग़्मा भी इस पुकार में है

खोल दे बाबे-मयकदा7 साक़ी इक फ़रिश्ता भी इन्तिज़ार में है

महवे-गर्दिश8 है कायनात9 शकील मेरी तक़दीर किस शुमार10 में है

1. आकर्षण 2. ज़माने के सौन्दर्य में 3. आवाज़ 4. ग़म के पर्दे से 5. धूल के पर्दे में 6. आधी रात के आर्तनाद को 7. मधुशाला का दरवाज़ा 8. चक्कर काटने में लीन 9. ब्रह्माण्ड 10. गणना </poem>