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सपने-4 / सुरेश सेन निशांत
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उन्होंने लोगों से कहा
तुम्हारे सपने तुम्हारी नींद में नहीं
बाज़ार में हैं
वहीं देखो खुली आँखों से
उन्हें मुस्कराते हुए
तुम्हारी देहरी तक आने को लालायित
किसी शो केस में सजे-धजे
तुम्हारे संग चलने को
खड़े हैं जैसे तैयार
थोड़े से पैसे खर्चो
भले ही ले लो किसी से उधार
पर करो उन्हें साकार
वे सपनों को बेचने का
करने लगे हैं कारोबार