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कछार / प्रभात कुमार सिन्हा
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माँ आर्द्र थी
नदी का शीतल कछार थी माँ
पिता पीली सरसों के खेत थे
जो कछार तक फैले थे
मैं मंद-पवन
मंद-पवन मैं कछार से उठा
और सरसों के पीले मुरेठों को
छूकर वापस हुआ तो
संपूर्ण कछार सुवासित हो उठा