रात भर जागना
इबादत ही तो है
किसी अज्ञात की
ज्ञात के लिए वरना
...जागता कौन है !
तुम अज्ञात नहीँ हो प्रभु
तुम्हारे बारे मेँ सब
सुन जान लिया है मैँने
तुमने कहा भी है
मेरे भीतर
अंश है तुम्हारा
और फिर लौटना भी है
मुझे तुम्हारे भीतर !
कौन है फिर वो
जिसके लिए
जागता हूं मैँ
रात भर ;
जरूर कोई सपना है वह
जिसके आने से
डरता हूं मैँ !