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सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से / शकील बँदायूनी

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सुब्ह का अफ़साना कहकर शाम से खेलता हूं गर्दिशे-आय्याम1से

उनकी याद उनकी तमन्ना, उनका ग़म कट रही है ज़िन्दगी आराम से

इश्क़ में आएंगी वो भी साअ़तें2 काम निकलेगा दिले-नाकाम से

लाख मैं दीवाना-ओ-रूसवा सही फिर भी इक निस्बत3 है तेरे नाम से

सुबहे-गुलशन4 देखिये क्या गुल खिलाए5 कुछ हवा बदली हुई है शाम से

हाय मेरा मातमे-तश्नालबी6 शीशा7 मिलकर रो रहा है जाम से

हर नफ़स8 महसूस होता है ‘शकील’ आ रहे हैं नामा-ओ-पैग़ाम8 से शब्दार्थ- 1. कालचक्र 2. क्षण 3. संबंध 4. उपवन की सुबह 5. फूल खिलाए 6. पिपासा का शोक 7. बोतल 8. श्वास 9. पत्र और संदेश