Last modified on 16 सितम्बर 2011, at 11:44

वह एक प्रार्थना भी / नंदकिशोर आचार्य

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:44, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=बारिश में खंडहर / नंदकि…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


एक सूना घाट
नौका बँधी है
दूर तक फैली हुई लहरें
उमगती बुलाती हैं उसे
बँधी नौका कसमसाती है।

कभी कोई था
उस पार से इस पार जो आया
-एक अर्सा हुआ-लौटा नहीं है।
कहीं जा कर बस गया होगा।

अब कौन जानेगा
उस नाव की पीड़ा
फिर से काठ होकर
रह गयी है जो
एक सूना घाट ही
जिस की नियति है।

(1980)