भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ख़ुशबुओं का हिसाब रखता है / दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
Kavita Kosh से
Dinesh tripathi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:01, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश त्रिपाठी 'शम्स' }} <poem> ख़ुशबुओं का हिसाब रखत…)
ख़ुशबुओं का हिसाब रखता है ,
वो जो नकली गुलाब रखता है .
उसका अहसास मर गया शायद ,
इसलिए वो किताब रखता है .
पूछता है जवाब औरों सॆ ,
पहले जो खुद जवाब रखता है .
साथ देता है सच का सिर्फ़ वही ,
दिल में जो इन्क़लाब रखता है .
‘शम्स’ रखता है आग सीने में ,
और आंखों में आब रखता है .