भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुक्त / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:53, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |संग्रह= }} <Poem> लकीरें एक के बाद एक फिर …)
लकीरें
एक के बाद एक
फिर भी छूट ही जाता है
कोई न कोई बिन्दू
जहॉ से फूटतीं हैं राहें
चमकती हैं किरणें
इन्हीं राहों से होकर
इन्हीं किरणों की तरह
निकल जाना तुम
लकीरों से बाहर
रचना अपना मनचाहा संसार
जिसमें लकीरें
किसी की राह न राकंे
न ही एक दूसरे को काटें
बल्कि एक दूसरे से मिलकर
तुम्हारे नये संसार के लिए
बनें आधार।