भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एकलव्य की तरफ़ से / दिनेश कुशवाह
Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनेश कुशवाह |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ग़ज़ब की राम मा…)
ग़ज़ब की राम माया है
ये कैसी धूप छाया है
कि जिनके पास फंदे हैं
उन्हीं के पास दाना है ।
भला क्या भेष धारे है
वे सारा देश तारे हैं
कि उनकी कोठियों और
थालियों में भरा सोना है ।
ये कैसी अग्निदीक्षा है
कठिन कितनी परीक्षा है
कि कोदो की पढ़ाई में
किसी नर का अँगूठा है ।
ये गीता भी उन्हीं की है
गदा-गांडीव जिनके हैं
जो अपने थे वे गूँगे थे
यही तो रोना, रोना है ।
मगर जब बात बोलेगी
तो कितने भेद खोलेगी
तुम्हारा बोलना भी
इस सदी में तंत्र-टोना है ।