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शुरूआत / रजनी अनुरागी

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मैं समझ नहीं पाती
कहाँ तक फैली हैं
तुम्हारी विषाक्त जड़े
कही तो निश्चित ही होगा अंत
ठीक वहीं से शुरूआत करुँगी मैं