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मौन / नीलेश माथुर

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आओ चलें
इस भीड़ से दूर कहीं
जहाँ मौन मुखरित हो
और शब्द निष्प्राण,
अपने चेहरे से
मुखौटे को उतार कर
अपने ह्रदय से पूछें
कुछ अनुत्तरित प्रश्न,
झाड़ कर
वर्षों से जमी धूल
धुले हुए वस्त्र पहनें
और बैठ कर
मौन के आगोश में
परम सत्य की
खोज करें,
आओ चलें
मौन के साम्राज्य में
जहाँ शब्दहीन ज्ञान
प्रतीक्षारत है!