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दर्द / नीलेश माथुर

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बहुत गहराई से
महसूस किया है
मैंने दर्द को इन दिनों,
बहुत समय बाद
खुलकर रोने का मौका
मिला है इन दिनों,
कोई सह रहा है दुःख
किसी के लिए
कोई ढाए जा रहा है सितम
किसी पर इन दिनों,
इस जिस्म से
रूह को जुदा कर सकूँ
इतना साहस भी
नहीं बचा है मुझमे इन दिनों,
जिन्हें अपना समझता रहा
उम्र भर
वही कत्ल करने पर आमाद हैं मेरा
इन दिनों,
किससे कहूँ
हाले-दिल अपना
मेरा खुदा भी मुझसे
नाराज है शायद इन दिनों !