भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विपक्ष में है हवा / प्रभात कुमार सिन्हा
Kavita Kosh से
Prabhat kumar sinha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:00, 19 सितम्बर 2011 का अवतरण
हवा तुम्हारे पक्ष में नहीं है
मशक्कत से थकी सांवरी लड़की की
परेशानी को
हेंठ करने वाली हवा जब
गुस्से में होती है तो
जल-समूहों के गर्भ को भी कंपा देती है
अंतरिक्ष-पोल पर जब
उठा-पटक करती है बादलों को
तो धरती के दृढ़ वृक्ष भी
जड़ों से उखड़ने लगते हैं
सूर्य को संसार की दृष्टि में
लाने वाली यही हवा
जब करती है किरणों से संसर्ग
तो मच जाता है जल-संसार में हलचल
फिर
इन्हीं मेघों के कन्धों पर
रखती है कपोल तो
कौंध उठती हैं बिजलियाँ
जवान होती इस सांवरी लड़की को
लम्पट निगाह से मत देखो लैंडलॉर्ड !
जवान होती इस लड़की के
बिल्कुल करीब है हवा
जबकि
हवा तुम्हारे पक्ष में नहीं है