भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

था बहती सदफ़ में बन्द / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:32, 10 सितम्बर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह |संग्रह=सुकून की तलाश }} थी बहती सदफ़...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


थी बहती सदफ़ में बन्द यकता गौहर :

ऎसे आलम में किसको तकता गौहर !

दिल अपना जो देख सकता ठ्हरा है कहाँ--

दरिया का सुकून देख सकता गौहर !


सदफ़= सीप; यकता=अद्वितीय; गौहर=मोती


(रचनाकाल: )