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जाने क्या ... / नंदकिशोर आचार्य

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जान क्या याद आया उसे
मेरी किस बात पर
और आँखें छलछला आयीं

मैं चुप, सकपकाया-सा
कि अचानक फैल गयी एक उज्जवल मुस्कुराहट
धुले चेहरे पर मुँदी पलकों
और बन्द होंठों से फूटती

मैं बुद्धू-सा देखता रहा अपलक
पर खुश कि अब वह रो नहीं रही है
‘पर क्या हुआ ?’
साहस कर मैं ने पूछा आखिर

आँख भर देखा उस ने मुझे
और बेतहाशा खिलखिलाने लगी
इतना की आँखें छलछला आयीं फिर ....

(1987)