भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खोज / मधु शर्मा
Kavita Kosh से
Sumitkumar kataria (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 13:28, 21 फ़रवरी 2008 का अवतरण
इतने हसीन मंज़र थे
उनकी बरछियाँ चुभती रहीं
दिमाग़ उनकी झिलमिली में उलझा
मन भूला
और देह पर गिरा
सारा युद्ध
मैं एक हारी हुई योद्धा--
मैदानों में दूर तक
छितरी हैं देहें मेरी
मैं आत्माओं को खोजती हूँ
छिन्न-भिन्न ।