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मामा के आगे ममियारे की /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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कर्तव्यों की नौका बातों से खेता है
मामा के आगे ममियारे की देता है

दुनिया नाहक ही करती है बदनामी
संतन को, सज्जन को कहती खल-कामी
तू अपने मतलब के क़िस्से गढ़ लेता है
मामा के आगे ममियारे की देता है
कर्तव्यों की नौका ..............................

जब से नख-दंत झड़े बदली है बोली
नाहर जी बाँटें परमारथ की गोली
कहते जग-सरिता मे रेता ही रेता है
मामा के आगे ममियारे की देता है
कर्तव्यों की नौका ..............................

रण टाला दुश्मन के सम्मुख नत होकर
प्राणों की रक्षा की स्वाभिमान खोकर
देखो तो अख़बारों में वही विजेता है
मामा के आगे ममियारे की देता है
कर्तव्यों की नौका ..............................

शेखर को मुन्नन से लड़वाया किसने
नोने के घर डाका पड़वाया किसने
रहने दे मालुम है तू कैसा नेता है
मामा के आगे ममियारे की देता है
कर्तव्यों की नौका ................................

बोला था तुझसे रहना है चौकन्ना
रस्ते भर चूसता रहा पगले गन्ना
पीछे से लात पड़ी तक जाकर चेता है
मामा के आगे ममियारे की देता है
कर्तव्यों की नौका ..............................