भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नजर- 2 / राजेन्द्र जोशी
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:56, 28 सितम्बर 2011 का अवतरण
एक बार देखा
पहली नजर में
सूरज से
नजरें गरमा गयीं
बदल गया दृश्य
कुछ इस कदर
शहर गायब हो गया
सब ओर अंधेरा छा गया..... !