Last modified on 28 सितम्बर 2011, at 04:00

धोरों की महक / राजेन्द्र जोशी

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:00, 28 सितम्बर 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

धोरे
धोरों की सुंदरता
क्यों लगती है सुहावनी !
धोरों पर सोते हैं
बैठते है
गुनगुनाते है
धोरों में चमक हैं !
क्या करता है यहां सोना ?
सोने को क्यों नहीं निकालते ?
निकलता है सोना
तभी तो कहता हैं
अमेरिका
भारत ज्ञान का विपुल भण्डार है
हथिया लेगें ये सारा विश्व !