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चलो हम आज इक दूजे में कुछ ऐसे सिमट जाएँ / शेष धर तिवारी

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चलो हम आज इक दूजे में कुछ ऐसे सिमट जाएँ
हम अपनी रंजिशों, शिकवाए ख्वारी से भी नट जाएँ

मेरी ख्वाहिश नहीं है वो अना की जंग में हारें
मगर दिल चाहता है आके वो मुझसे लिपट जाएँ

हमारी ज़िंदगी में तो मुसलसल जंग है जारी
है बेहतर भूल हमको आप खुद ही पीछे हट जाएँ

अलग हों रास्ते तो क्या है मंजिल एक ही सबकी
नहीं होता ये मुमकिन हम उसूलों से उलट जाएँ

चलें हम प्रेम और सौहार्द के रस्ते पे गर मिल के
तो झगडे बीच के खुद ही सलीके से निपट जाएँ

हमें तो चाह कर भी आप पर गुस्सा नहीं आता
कहीं गुस्से में जो खुद आप वादे से पलट जाएँ

भरोसा है हमें इक दूसरे पर ये तो अच्छा है
गुमां इतना न हो इसका कि हम दुनिया से कट जाएँ