भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गालां माथै धर हाथ सोच भायला / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:10, 14 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सांवर दइया |संग्रह=आ सदी मिजळी मरै /...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गालां माथै धर हाथ सोच भायला
सुख-दड़ी लेयग्यो कुण बोच भायला

आ पून पम्पोळती अर हिलता सिट्टा
कठै गयी बा लचक बो लोच भायला

माथै आ पड़ी है झेल्यां ई सरसी
क्यूं होवै इतरो होच-पोच भायला

सागै बहीर हुवणिया आ कह खिसक्या
म्हांरै पग में आयगी मोच भायला

तूं है, तावड़ो है, धोरा है, देख लै
हां, टुर परो, अब क्यां रो सोच भायला