भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सूरज कभी नहीं डूबता / मलय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:41, 19 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मलय }} {{KKCatKavita}} <poem> कोई अन्दर उतरता है ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
कोई अन्दर
उतरता है
सुबह जैसा
फिर
अपनी बातों के
खुलते
दिन में
सूरज की फ़िक्र किए बग़ैर
चढ़ता ऊँचाइयाँ ब्रह्माण्ड की
इस हलचल से
जाग उठते हैं और
अपने कामों में डूबकर
नहाते हैं
रूखड़ रगड़ में से भी
पैदा करते हैं जीवन की आग
दीप्तवान
गलियारों की
पंक्तियाँ-पंक्तियाँ
उम्र के पसरकर
फैले अन्दाज़ में
धड़कती हैं और
खिंचती यात्राओं के
अपने दिन रचती हैं
इस दिन में
हर सूरत में
अपना काम करने से
जो नहीं चूकता
उसका सूरज कभी नहीं डूबता !