Last modified on 22 अक्टूबर 2011, at 14:36

सुना करें किस-किस की आहें / त्रिलोचन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 22 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन |संग्रह=अरघान / त्रिलोचन }}...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जहाँ राष्ट्र के पेड़ अनेकानेक गिरे थे
आज वहीं से कार राष्ट्रपति की निकली थी,
दो ही लोचन लोचन-वन में घिरे-घिरे थे
भीड़-भाड़ में अतुल त्वरा गति की निकली थी,
कहीं खो गई जो आभा मति की निकली थी,
कानों में संगीत भरा था, वहाँ कराहें
कैसे जातीं । चिट्ठी सी यति की निकली थी
दौड़ रही थी, दौड़ रही थी । दावत चाहें
तो गति कुछ ऐसी हो जिस को देख सराहें
दर्शकजन । दुनिया है, लोग मरा करते हैं,
भला राष्ट्रपति सुना करे किस-किस की आहें
इन आहों से दुर्बल हृदय डरा करते हैं ।

ऐसा हो राष्ट्रपति कि जीमे, फिर डकार ले,
'दुर्घटना से मुझे दुःख है' यह सकार ले ।