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कुँभकांड में जननेता / त्रिलोचन
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चमत्कार है, दावत होने पर दुर्घटना
नेताओं को ज्ञात हुई । फिर कारें दौड़ी
दौड़ी इधर से उधर पहुँची, यों ही खटना
पड़ता है अवसर पर, सजी-सजाई चौड़ी
सड़क दहल-सी उठी । भीड़ थी मानो गौड़ी
रीति पृष्ठ की पंक्ति में कसी-कसाई
हो । बन गई सड़क पल में बंदर की पौड़ी
जननेता आसीन दिखे, इस तरह रसाई
उन की दिखी । जहाँ फूटन थी वहाँ टसाई
बातों से करते थे, सचमुच घाव बड़ा था
नहीं धूल से ढँक देते पर सभा बसाई
थी रेती पर, कितना टेढ़ा काम पड़ा था।
अज्ञ कहाँ सर्वज्ञ कहाँ हैं ये जननेता,
कुंभकांड कहता है, लेखा लेता-देता ।