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मृत्यु डराती नहीं / चंद्रप्रकाश देवल
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सांसो से बुनी जाती
चदरिया के दो धागों के बीच
जब गफलत से छूट जाती है
अनुपात से अधिक दूरी
इसी खाली जगह में
आ बैठती है मृत्यु!
प्रत्येक खाली जगह में
हर एक शून्य में
निवास करती है वह अदीठ शह!
हम जब विराने में
अथवा अंधेरे में
खण्डहर में
होते हैं प्राय: भयभीत जहां
वहां हम भरे पूरे जीवन में
खाली जगह होने की संभावना से डरते हैं!
मृत्यु का क्या
वह जहां पाती है ठौर जम जाती है!
ऐसा सोच कर हम खुद से डरते हैं!
वरना
मृत्यु किसी को डराती नहीं
वह तो सबसे डरती स्वयं दुबकती है यहां - वहां!