ग़ुलामी
आज़ादी तक
घटती रही
हमारे ऊपर
आज़ादी
ग़ुलामी की तरह
आज भी घट रही है
बहुत बड़ी घटना है
आज़ादी
जिसके संवैधानिक
इतिहास में
धीरे-धीरे
लुप्त होते रहे हम ।
या जीवित रहे छोटी-छोटी घटनाओं में ।
सबके साथ चिपके
सन्नाटे को चीरना
पेड़ कटने के
बाद की घटना है ।
सुनसान में
संवाद करती
नदी को बाँधना
गाँवों के बेघर होने के
बाद की घटना है ।
घटनाओं के नीचे
कसमसा रही
घटनाओं के
हहराते दर्द को
शब्दों में समेटना
अनुभव के बाद की
घटना है ।