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चाँद सा चेहरा / पद्मजा शर्मा

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आसमान जैसे ख़ुद अँधेरे में रहकर
सितारों को चमकने देता है
धरती जैसे अत्याचार सहकर भी
हर प्राणी को बोझ उठाती है
हवा जैसे औरों के लिए उड़ती फिरती है
अपनी थकान किसी से नहीं कहती है
वैसी ही होती है माँ और उसकी ममता
ख़ुद गीले में सोकर
संतान को सूखे में सुलाती है
स्वयं कष्ट सहकर उसकी राह आसान बनाती है

धीरज का, देने का, प्यार का अर्थ
ख़ुद समझती, उसे समझाती है
बच्चा सो रहा होता है तब भी
कितनी ही रातें माँ जागते हुए बिताती है
कि कहीं उसकी आँख लगते ही
वह जग गया तो
डर गया तो

माँ को अगर सपना आता है तो
उसमें होता है मुस्कराता हुआ बच्चा
और उसकी किलकारियाँ
माँ कहानियाँ रचती-बुनती
पवित्र मंत्रों-सी लोरियां गुनगुनाती है
रात-रात भर जग कर
रोते बच्चे को बहलाती है
माँ, माँ होती है

माँ, माँ ही होती है
उसका कोई विकल्प नहीं
क्योंकि चाँद के लिए रोते बच्चे को
वही हँसाती है
और वही हँसा सकती है
अपना चाँद-सा चेहरा दिखाकर।