भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाँच सितारा होटल / ”काज़िम” जरवली

Kavita Kosh से
Kazim Jarwali Foundation (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:21, 8 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=काज़िम जरवली |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>या...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

याद आती है !!!
बांस की खाट पर बैठी हुई,
टेढ़े सींगो वाली पागुर करती काली बकरी ।।
याद आती है !!!

कच्ची दीवार की ओट से ।
चाँद के चेहरे पर बादल सी मैली ओढ़नी,
पुरानी चाँदी के मैले कंगन की ।।
याद आती है !!!
 
चमचमाते हुये पीतल के बर्तनो की ।
रामदास और दीन मोहम्मद के आँगन की,
दही, राब और लेमू की पत्ती से बने शरबत की ।।
याद आती है !!!


तुम किया सोच रहे हो ?
तुम तो पांच सितारा होटल मै हो !
मै किया जवाब दूँ ???

इन मै से कोई सितारा मेरे काम का नहीं ।
जो मेरे थे,
मेरी पलकों मे बसे हुए हैं ।।
कुछ मेरे गाँव की मिटटी मे रचे बसे हुएं हैं ।।। --”काज़िम” जरवली