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बग़ीचे वाली तितलियां / पद्मजा शर्मा

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जिन दिनों
वह लड़की आती थी
देखले तितलियां बग़ीचे की

फूलों-पत्तों-शाख़ों पर
ढूंढा करती थी झुक-झुक कर
न मिलने पर हो जाती थी उदास
मैं उसकी मासूमियत के कारण
नहीं बता पाया
उसे नहीं मिलेंगी वहाँ तितलियाँ

क्योंकि उसकी झील-सी आँखों में
खिले थे कमल
जिन पर उड़ने लगी थीं
सतरंगी सपनों-सी
बग़ीचे वाली सारी तितलियाँ
उन दिनों।