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साथ हो तुम और रात जवाँ / शैलेन्द्र
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साथ हो तुम और रात जवाँ
नींद किसे अब चैन कहाँ
कुछ तो समझ, ऐ भोले सनम !
कहती है क्या, नज़रों की ज़ुबाँ
महकती हवा, छलकती घटा
हमसे ये दिल, सम्भलता नहीं
की मिन्नतें, मनाकर थके
करें क्या ये अब तो, बहलता नहीं
देख के तुमको, महकने लगा
लो बहकने लगा, हसरतों का जहाँ
हम इस राह पे, मिले इस तरह
के अब उम्र भर, न होंगे जुदा
मेरे साज़-ए-दिल की आवाज़ तुम
मैं कुछ भी नहीं तुम्हारे बिना
आओ चलें हम, जहाँ प्यार से
वो गले मिल रहे, हैं ज़मीं आस्मां
(फ़िल्म ’काँच की गुड़िया’ के लिए)