भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उसने कहा / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:06, 18 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्मजा शर्मा |संग्रह=सदी के पार / पद...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मैंने कहा-यह कोयल इतना मीठा क्यों गाती है ?
उसने कहा-यह तो वही जानती है
मैंने कहा-यह पेड़ सदियों से एक टांग पर खड़ा
किस साधना में लीन है ?
उसने कहा-यह तो वही बता सकता है
मैंने कहा-यह नदी किस के लिए बहती है ?
उसने कहा-यह तो उसी से पूछो
मैंने कहा-सब से पूछा
उसने कहा-क्या बोले ?
मैंने कहा-वे बोले कि तुम जानती हो सब कुछ
उसने कहा-क्या तुम नहीं जानते ?
मैंने कहा-पर तुम्हारे मुँह से सुनना चाहता हूँ
उसने कहा-तो सुनो
मैंने कहा-सुनाओ
उसने कहा-प्रेम।