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खनक / पद्मजा शर्मा
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‘सच्चे ओर खरे सिक्के कैसे होते है ?’
‘तुम्हारे जैसे’
‘इनकी खनक कैसी होती है ?’
‘तुम्हारी हँसी सरीखी’
‘तुम ऐसा क्यों कहते हो ?’
‘क्योंकि तुम हो ही ऐसी’
‘तुम कैसे कह सकते हो ?’
‘क्योंकि मैं तुम्हे चाहता हूँ’
‘तो ?’
‘तुम भी चाहोगी तो जान जाओगी’
‘क्या ?’
‘यही कि कितनी प्यारी होती है चाहत
और कितना ऊँचा होता है प्रेम
और जब होता है तब
क्या-क्या नहीं कहलवाता है
प्रेम।’