भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैसे कैसे तलवे / कैलाश गौतम

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:42, 18 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश गौतम |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> कैसे ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसे कैसे तलवे अब सहलाने पड़ते हैं
कदम कदम पर सौ सौ बाप बनाने पड़ते हैं

क्या कहने हैं दिन बहुरे हैं जब से घूरों के
घूरे भी अब सिर माथे बैठाने पड़ते हैं

शायद उसको पता नहीं वो गाँव की औरत है
इस रस्ते में आगे चलकर थाने पड़ते हैं

काम नहीं होता है केवल अर्जी देने से
कुर्सी कुर्सी पान फूल पहुँचाने पड़ते हैं

इस बस्ती में जीने के दस्तूर निराले हैं
हर हालत में वे दस्तूर निभाने पड़ते हैं

हँस हँस करके सारा गुस्सा पीना पड़ता है
रो रोकर लोहे के चने चबाने पड़ते हैं