Last modified on 19 नवम्बर 2011, at 10:19

मेम साहब का कुत्ता / सुभाष शर्मा

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:19, 19 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> किस...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

किसने काटा ?
साहब ने ?
-- नहीं
मेम साहब ने ?
-- नहीं,
तो मेम साहब के कुत्ते ने जरूर काटा होगा ।
क्यों, थाने में रपट लिखाई ?
नहीं, दारोगा उसका
चाचा लगता है ।
जहाँ-जहाँ जाओगे
घाव पर नमक पाओगे
कहाँ चले ? अदालत ?
उंह !
सुनो, अदालत के दरवाजे पर
लटकता है कानून का ताला
जिसकी कुंजी है वकीलों
की काली जेब में
और उधर जज साहब
हमें देखते हैं बिना आँखों के
वकीलों की आँखों के सहारे ।
क्या दोगे जवाब
इन सवालों का ---
तुमने साफ-सुथरे कुत्ते के
मुँह में अपने मैले-कुचैले
हाथ-पैर क्यों डाले ?
क्या कुत्ते की इजाजत ली थी ?
कहीं उसे छूत की बीमारी लग जाती तो ?
उसका मुँह फट जाता,
वह मर जाता तो ?
आखिर पहचान
संगति से होती है ---
कुत्ता समझदार है
क्योंकि मेम साहब की संगति में है ;
सो, समझदार मेम साहब
का समझदार कुत्ता
केवल नासमझ को ही काटा सकता है ।
फिर गवाह कौन है ?
सुबूत क्या है ?