भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आँधियाँ हाबी न हो जायें / अशोक रावत
Kavita Kosh से
Dr. ashok shukla (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 20 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अशोक रावत |संग्रह= थोड़ा सा ईमान / अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हमारी चेतना पर आँधियाँ हाबी न हो जायें,
कहीं ज़ुल्मो सितम सहने के हम आदी न हो जायें.
कहीं ऐसा न हो जाये भुला ही दें परिंदों को,
कहीं ये पेड़ कटने के लिये राज़ी न हो जायें.
डुबो दें बीच दरिया में हमारी नाव ले जा कर,
तमाशा देखनेवाले कहीं माँझी न हो जायें.
हमें डर है अहिंसा,प्रेम, करुणा, दोस्ती, ईमान,
बदलते दौर में अलफ़ाज़ ये गाली न हो जायें.
कहीं ये गौडसे इतिहास का नायक न हो जाये,
कहीं मायूस इस इतिहास से गाँधी न हो जायें.