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डर मुझे भी लगा फ़ासला देखकर / अशोक रावत
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डर मुझे भी लगा फ़ासला देखकर,
पर में बढ़ता गया रास्ता देखकर.
ख़ुद ब ख़ुद मेरे नज़दीक आती गई,
मेरी मंज़िल मेरा हौसला देखकर.
मैं परिंदों की हिम्मत पे हैरान हूँ,
एक पिंजरे को उड़ता हुआ देखकर.
खुश नहीं हैं अॅधेरे मेरे सोच में,
एक दीपक को जलता हुआ देखकर.
डर सा लगने लगा है मुझे आजकल,
अपनी बस्ती की आबो- हवा देखकर.
किसको फ़ुर्सत है मेरी कहानी सुने,
लौट जाते हैं सब आगरा देखकर.