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मैं ऒर तुम / विनोद पाराशर
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मॆं-नहीं चाहता
कि तुम
ऒपचारिकता का लिबास पहनकर
मेरे नजदीक आओ.
अपने होठों पर
झूठ की लिपिस्टिक लगाकर
सच को झुठलाओ
या देह-यष्टि चमकाने के लिए
कोई सुगंधित साबुन
या इत्र लगाओ.
मॆं-चाहता हूं
कि तुम
अपनी असली झिलमिलाहट के साथ
मुझसे लिपट जाओ.
मेरे सुसुप्त भावों को
कामदेव-सा जगाओ
ओर फिर-
दो डालें
हवा में लहराने लगें
होती हुई एकाकार.