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नदिया किनारे हेराए आई कँगना / मजरूह सुल्तानपुरी
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हे नदिया किनारे हेराए आई कंगना
ऐसे उलझ गए, अनाड़ी सजना
नदिया किनारे ...
काहे पनघट ऊपर, गई थी चलके अकेली
मारे हँस हँस ताना, सारी सखियाँ सहेली
गोरी और जाओ न मानो कहना
नदिया किनारे ...
अब खड़ी खड़ी सोचूँ
देखी है सास ननंदीया सब का करी है बहाना
अब तो सूनी कलाई लै के चोरी चोरी जाना
भारी पड़ा रे पिया से मिलना
नदिया किनारे ...