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कोई नयी भाषा / कुमार सुरेश

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== अद्र्श्य

बहुत जोशीला भासन दे रहा था वह
रणभेरी की तरह बजता
चढ़े दरिया की तरह इठलाता
अग्निबाण की तरह आतुर
जो सुन रहा स्तब्ध हुआ
भूला दुनिया के प्रपंच
सामने ही था जीवन का लक्ष्य
वातावरण बस उबलने को ही
यही नेता और यही सही समय
अब सारा हिसाब चुकता होगा

अचानक शत्रु हुन्कार की तरह
तेज आवाज गूँज उठी अनजानी
थर्राया वातावरण
आह आ ही पंहुचा जूझने का पवित्र पल
बलिदान की बेला ही हो
निर्णायक इशारे की तलाश में
लाखो नजरे एक साथ लपकी
नायक की तरफ
वह जोशीली आवाज के साथ ही
अब द्रश्य में नहीं था

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