भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अद्र्श्य / कुमार सुरेश

Kavita Kosh से
Kumar suresh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 23 नवम्बर 2011 का अवतरण (' == <poem>शीर्षक</poem> == द्रश्य में नहीं == <poem>बहुत जोशीला भासन ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
==

शीर्षक

द्रश्य में नहीं

बहुत जोशीला भासन
दे रहा था वह
रणभेरी की तरह बजता
चढ़े दरिया की तरह इठलाता
अग्निबाण की तरह आतुर
जो सुन रहा स्तब्ध हुआ
भूला दुनिया के प्रपंच
सामने ही था जीवन का लक्ष्य
वातावरण उबलने को ही
यही नेता और सही समय
अब सारा हिसाब चुकता होगा

अचानक शत्रु हुन्कार की तरह
तीक्ष्ण आवाज गूंज उठी अनजानी
थर्राया वातावरण
आह आ ही गया
जूझने का पवित्र छन
बलिदान की बेला ही है
निर्णायक इशारे के लिए
लाखों दृष्टिया लपकी नायक की तरफ
वह जोशीली आवाज के साथ ही
अब द्रश्य में नहीं था




==