भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अखत पुसब / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 24 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्जुनदेव चारण |संग्रह=घर तौ एक ना...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बेटियां
स्त्रिस्टी रौ
अखत पुसब है
आंरै कारण
चिळकतौ रैवै आंगणौ
आंरै कारण
सौरम बिखेरै रसोई
हरेक घर रा
किंवाड़
आंनै ओळखै
परींडौ
आंरी आंगळियां चूस
करै काळजौ ठंडौ
सगळां नै
तिरपत करती
वे
तळीजै आखी जूण
पण
नीं खूटै
आंरी सौरम
बेटियां
स्त्रिस्टी रौ
अखत पुसब है