Last modified on 26 नवम्बर 2011, at 14:51

धुंध में-1 / नंदकिशोर आचार्य

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:51, 26 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अपनी ही धुंध में
खोई रहती है वह

सिहरती कभी
खुलती भी है कुछ-कुछ
जितना आविष्कृत कर पाता
                   सूरज

जाते ही उस के
धुंध में फिर अपनी ही
खो जाती घाटी ।


29 दिसम्बर 2009