रचता है असत्
सत् को
ज्योति को तमस् जैसे
तुम को रच देती है
मेरी कामना वैसे
देह का सपना है आत्मा
अपने अँधेरों में जो
रचती रहती है उसे
—
12 अप्रैल, 2009
रचता है असत्
सत् को
ज्योति को तमस् जैसे
तुम को रच देती है
मेरी कामना वैसे
देह का सपना है आत्मा
अपने अँधेरों में जो
रचती रहती है उसे
—
12 अप्रैल, 2009