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हर क़दम नई / नंदकिशोर आचार्य

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घनी धुन्ध में गुम
यह वनखंडी
हर क़दम नई होती ही
                 जाती है

भटकाती है जितना
नया कर जाती है उतना ही—
अपनी घनी धुन्ध में
लेती हुई मुझे ।

18 नवम्बर 2009