भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर क़दम नई / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:41, 1 दिसम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य |संग्रह=केवल एक प...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घनी धुन्ध में गुम
यह वनखंडी
हर क़दम नई होती ही
                 जाती है

भटकाती है जितना
नया कर जाती है उतना ही—
अपनी घनी धुन्ध में
लेती हुई मुझे ।

18 नवम्बर 2009