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रहस्य / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

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रहस्य यह है
कि हम रहस्य से नावाकिफ़ हैं

वे कहते थे 'वहाँ'
जहाँ पहुँचने पर
उनके सिपाही आगे की ओर इशारा करते थे

यह क्रम चलता रहता था
और इस तरह
सारी पृथ्वी नाप लेने के बाद भी
चलने वाला नहीं जान पाता कि 'कहाँ'

'कहाँ' यह वे ही बताते थे
और चलने के लिए
गद्देदार रास्ते भी बनाते थे

जहाँ-जहाँ मृगशावक
कुलाँचे नहीं भरते थे
और जहाँ-जहाँ से पहाड़ी बकरियाँ
बिना रुके, बिना पानी पिए गुज़र जाती थीं
वहाँ-वहाँ वे थे

यहाँ से वहाँ तक
उनके संकेतों पर चलते हुए
एक दिन ऐसा हुआ
कि चिड़ियाँ मुझ पर हँसने लगीं

जब मैंने गौर से अपनी टाँगों की ओर देखा
तो वे घिस चुकी थीं
और दर‍असल मैं चलना भूल गया था।