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केवल शब्द ही / पुरुषोत्तम अग्रवाल

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शब्दों को नाकाफी देख
मैं तुम तक पहुँचाना चाहता हूं
कुछ स्पर्श
लेकिन केवल शब्द ही हैं
जो इन दूरियों को पार कर
परिन्दों से उड़ते पहुँच सकते हैं तुम तक
दूरियां वक्त की, फ़ासले की
तय करते शब्द-पक्षियों के पर मटमैले हो जाते हैं
और वे पहुँच कर जादुई झील के पास
धोते हैं उन्हें तुम्हारी निग़ाहों के सुगंधित जल में